Mr Prakash Puri
Mr Prakash Puri, TGT Sanskrit
यूं करता है मेरा मन यूं करता है मेरा मन ,मैं एक बच्चा बन जाऊं l मां शारदे के प्रांगण में, मैं बच्चों में मिल जाऊं l हूं मैं नेट, एम, बी एड, पर यह मेरी तरफदारी नहीं, काम आऊं बच्चों के शिक्षण में, इससे बड़ी वफादारी नहीं l यूं करता है मेरा मन मैं एक बच्चा बन जाऊं l बच्चों के संग खेलूं, कुदू, खेल खेल में समझाऊं l पढ़ लिख कर होशियार बनो तुम, नाम अपना रोशन कर जाओ l पढ़ने पढ़ाने में ही है भलाई, बाकी किस काम की ठाकुराई l यूं करता है मेरा मन मैं एक बच्चा बन जाऊं l बच्चों के संग नाचूं कूदू , बच्चों के संग गाऊँ l कुछ भी हो जाए पर ईमानदारी न गवाऊँ l यूं करता है मेरा मन मैं एक बच्चा बन जाऊं l बच्चों के संग बच्चा बनकर, बच्चों में घुल जाऊं l यूं करता है मेरा मन मैं एक बच्चा बन जाऊं l |
विद्यार्थी जीवन और अनुशासन विद्यार्थी शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है विद्या और अर्थी | और यदि विद्यार्थी के जीवन में विद्या ही हट जाए तो केवल अर्थी शेष रह जाता है |विद्यार्थी जीवन में अनुशासन का अपना बड़ा ही महत्व है अनुशासन विद्यार्थी को योग्य बनाता है | वास्तव में विद्यार्थी जीवन में समय का सदुपयोग गुरुजनों और माता-पिता की आज्ञा का अक्षरश पालन करते हुए जीवन की उचाईयों को प्राप्त किया जा सकता है | काकचेष्टा बकोध्यानम् श्वाननिद्रा तथैव च | अल्पाहारी गृहत्यागी विद्यार्थिन: पञ्चलक्षणम् || “विद्यार्थी जीवन में विद्यार्थी के पांच लक्षण बताए गए हैं जिसमें यह बताया गया है की विद्यार्थी की चेष्टा कौवे की तरह, ध्यान बगुले की तरह, नींद स्वान की तरह तथा अल्प आहार करना, गृह त्याग करना प्रमुख है |” विद्यार्थी जीवन अनेक गुणों से युक्त होना चाहिए क्योंकि बिना गुण के व्यक्ति का सम्मान उसे प्राप्त नहीं होता है | येषां न विद्या न तपो न दानं , ज्ञानं न शीलं न गुणो न धर्म: | ते मृत्युलोके भूवि: भारभूता : , मनुष्य: रुपेण मृगाश्चरन्ति || “अर्थात मनुष्य जीवन में विद्यार्थी जीवन सबसे महत्वपूर्ण समय है ऐसे समय में जिस व्यक्ति के पास न विद्या है, ना तपस्या है, ना दान है, न ज्ञान है, ना चरित्र है, ना गुण है , ना धर्म है ,ऐसे मनुष्य इस मृत्यु लोक पर भार स्वरूप है वे मनुष्य होकर भी पशुवत आचरण करते हैं |” “STUDENT LIFE IS THE GOLDEN PERIOD THE OUR LIFE.” हमारी सनातन संस्कृति के अनुसार यह मान्यता है कि मनुष्य जीवन बड़ा पुण्य कार्य के बाद प्राप्त होता है और उसमें भी विद्यार्थी जीवन श्रेष्ठ कार्यों से ही प्राप्त होता है विद्यार्थी जीवन में अपने समय का सदुपयोग करना और सत्संगति के साथ जीवन में आचरण करना अपने आप में बड़ा ही महत्वपूर्ण कार्य है | महात्मा गांधी ने विद्या के बारे में अपने विचार प्रकट करते हुए यह कहा था कि “ सा विद्या या विमुक्तये “ अर्थात विद्या वह ही है जो हमें परतंत्रता की बेडीयों से आजाद कर दे अर्थात विद्यार्थी अनुशासन के बल पर अपने जीवन की समस्त बाधाओं को पार करके सफलता के शिखर पर चढ़ जाता है | अनुशासन के बल पर ही भीष्म, द्रोण युधिष्ठिर , कर्ण, प्रहलाद , ध्रुव , एकलव्य जैसे महान व्यक्तित्व ने इतिहास के पन्नों में अपने अलग पहचान बनाई है | अनुशासन के बल पर ही एपीजे अब्दुल कलाम, कल्पना चावला जैसे महान व्यक्तित्व ने देश की प्रगति को एक नई दिशा दी है | “STUDENT “ S FOR “ STUDIOUS “ T FOR “ TRUTHFULNESS “ U FOR “ UNDERSTANDING ” D FOR “ DISCIPLINE “ E FOR “ ENERGETIC “ N FOR “ NEAT AND CLEANESS “ T FOR “ TREASURE “ |