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Welcome to Swami Vivekanand Government Model School, Jhadoli, Block Pindwara, Sirohi
Admit Cards 2025 for classes X & XII can be collected from the school during the school time.
Khushwant Kumar Mali शोधार्थी-संस्कृत विभाग

 

 

 

" रित पाठशाला के साथ कुछ नवाचार विद्यालय शिक्षण की महती आवश्यकता और शिक्षण के साफल्य का मूल। "         13.02.2024

नई शिक्षा नीति-2021 में स्कूली पाठ्यक्रम 5+3+3+4 के अनुसार होगा। इसके तहत अब तक दूर रखे गए 3-6  साल के बच्चों को स्कूली पाठ्यक्रम के तहत लाने का प्रावधान है, जो बच्चे के मानसिक विकास के लिए जरूरी है। नई प्रणाली में तीन साल की आंगनवाड़ी/प्री स्कूलिंग के साथ 12 साल की स्कूली शिक्षा होगी।

अब स्कूल के पाठ्यक्रम और अध्यापन कला का  लक्ष्य 21वीं सदी के प्रमुख कौशल या व्यवहारिक जानकारियों, उपलब्धियों से विद्यार्थियों को लैस करके उनका समग्र विकास करना  और  अनुभवात्मक शिक्षण पर अधिक फोकस करने के लिए पाठ्‌यक्रम को कम करना है।

पाठशाला से परिचय प्राप्त करते बालक पर बस्ते का बोझ अच्छा नहीं हैं। वैसे प्राथमिक व पूर्व प्राथमिक कक्षाओं का पाठ्यक्रम न्यून रहता है। पर फिर कुछ नवाचारों के द्वारा अध्यापन को और अधिक रूचिकर, सुगम एवं सफल बनाया जा सकता है। यदि ऐसा हो तो फिर छोटे "नन्हे मुन्हे नौ निहालों " का सुबह-सुबह न तो पेट दुखेगा और न सिर।  वे आनंद पूर्ण मनोयोग से सीखेंगे। रुचि के साथ नियमित विद्यालय आयेंगे।

छात्रों की नियमितता भी सीखने के  प्रतिफल को पूर्णता देती है। सामान्यतः ऐसा माना जाता  है कि बच्चे विद्यालय आने में कोई खास रुचि नहीं लेते हैं। माता-पिता,अभिभावक को भी विद्यालय  भेजने हेतु कुछ बच्चों के साथ विशेष मेहनत की पड़ती है। ऐसी समस्या छोटे  बच्चों के साथ ज्यादा रहती है।

छोटे बच्चों के शाला में प्रवेश के साथ ही यदि बच्चों को हल्के-हल्के म्यूजिक के साथ डांस करवाया जाए तो इससे उनका अच्छा मनोरंजन भी हो जायेगा और वो पूरे दिन रुकने के तैयार भी हो जायेंगे। इसी में नवाचार करते हुए पिरामिडस,' 'योगा' व अन्य प्रकार के अभ्यास द्वारा उनको प्रकृति से भी जोड़ा जा सकता है, साथ ही साथ ही उनको शारीरिक रूप से भी मजबूत किया जा सकता है। ऐसे बच्चे भविष्य के अच्छे डांसर, योगा एक्सपर्ट, मार्शल आर्ट ट्रेनर बनकर जीवन में करियर भी तलाश सकते है।

'छोटे बच्चों का कक्षाकक्ष यदि प्रकृति से आसन्न हो तो अधिगम सर्वोच्च हो सकता है। अध्ययन भी यह कहते है कि “प्रकृति सबसे बड़ी अध्यापिका है।“ प्रकृति को देखकर, स्पर्श द्वारा, अवलोकन से सबकुछ सीखा जा सकता है। ‘निसर्ग’ अपने परिवर्तनों द्वारा पेड़- पौधो की पत्तियों का झंडना- बढ़ना, हरितिमा  ग्रहण करना आदि द्वारा ऋतु परिवर्तन व ऋतुओं का ज्ञान करवाती है। प्रकृति के क्या -क्या घटक उपयोगी है? प्रकृति की महत्ता, उपयोगिता व उपादेयता  से उनके संरक्षण, संवर्धन व सम्पोषण की अच्छी व सच्ची सीख भी दी जा सकती है।

कक्षा-कक्ष के भीतर व बाहर गमलों द्वारा हरीतिमा से प्राण-वायु ऑक्सीजन से विद्यालय परिसर को स्वच्छ व स्वस्थ किया जा सकता है। खुशबूदार फूलों वाले पौधों से हवा को सुगंधमय करके एकाग्रता भी बढ़ाई जा  सकती की है। जिसकी महती आवश्यकता अधिगम में रहती है। सब्जियाँ, तरकारियाँ व मौसमी फल जो  वातावरण में प्रयुक्त हो,शाला परिसर को उससे परिपूर्ण करके, छात्रों को उत्तम स्वास्थ्य का अनुपम उपहार दिया जा सकता है। इस दिशा में "किचन गार्डन' विद्यालयों में अच्छी पहल है। हमारे विद्यालय के दल जिसमें मुख्य भूमिका के सूत्रधार रहे गजानंद मीणा व बनवारी लाल मीणा के संयुक्त प्रयासों ने शाला परिसर को अन्दर व बाहर सुन्दर सुंगधदार फूलों के पौधे, फलों व औषधीय पौधों से रोशन कर दिया। श्री बनवारी लाल का किचन गार्डन वासत्व में प्रशंसनीय रहा जो समय के साथ बंदरो के हमले व स्वयं उनके स्थानान्तरण द्वारा उजड गया। जो अत्यंत खेद का विषय रहा। लेकिन उद्यान अभी भी अपने सुंगधदार पौधों, फूलों, छायादार व मीठे फलों से विद्यार्थियों का नियमित स्वागत करता है। उद्यान की हरी गद्देदार घास योगा, प्रार्थना व शारीरिक आयोजन में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। केले, अनार, बादाम, अमरूद, नींबू, मीठा नीम, नारियल, बॉटल पॉम, तुलसी, गुलमोहर, चम्पा, चमेली, मधुमालती, मोगरा, सफेदा, ग्रीन टी घास, कनेर व अन्य औषधीय पौधें हर आगन्तुक को अनायाश ही अपनी ओर खींच लेता है। निश्चित तौर पर सरकार का 'हरीत पाठशाला''किचन गार्डन' का यह कदम प्रशंसनीय है। जिससे छात्रों को मध्याह्न भोजन हेतु स्वच्छ, ताजी सब्जियां तो उपलब्ध हो रही है साथ ही साथ बागवानी, कृषि की बारीकियाँ, बागवानी कृषि का महत्व व उपादेयता को भी स्कूली छात्र सीख रहे है।

समय की मांग है कि विद्यालय परिसर  इको फ़्रेंडली हो।

श्री गजानंद मीणा, श्री राम सिंह सैनी, श्री सुरेन्द्र सिंह गुर्जर, श्री योगेश सुरेडिया, श्री राजपाल, श्री बनवारी लाल मीणा, श्री खेतदान, श्री दिनेश भार्गव, श्री राकेश कुमार, श्रीमती कुंकुम अजमेरा व कुसमलता ने विद्यार्थियों संग प्रधानाचार्य श्री श्याम सुंदर व्यास की निर्देशन में मेहनतकश श्रमदान कर स्वामी विवेकानंद राजकीय मॉडल विद्यालय झाडोली ब्लाक- पिण्डवाडा  को हरा- भरा स्वच्छ व स्वच्छ बना दिया है। जो अद्यावधि पर्यन्त शिक्षकों, विद्यार्थियों व स्वयंसेवको के मेहनत से रोशन है। आज भी बेहतर रखरखाव और निगरानी से गुलज़ार है।

विद्यालय में जितने ज्यादा पेड़-पौधे होंगे उतना ही अधिगम सफल व सुगम होगा | समय पर नदियों के तटों  का भ्रमण, उद्गम स्थलों की यात्राएं, झीलों, तालाबों आदि का भ्रमण और वनभ्रमण  द्वारा प्रकृति के प्रति छात्रों की समझ को गहरा किया जा सकता है।प्रकृति के सभी घटकों का ज्ञान, जुडाव, सहवास व समझ छात्रों को भविष्य का प्रकृति पूजक व प्रकृति उपसाक बना सकता है। जिसकी आज महती आवश्यकता है। प्रकृति के रक्षक बनकर ही जीवन की कल्पना सम्भव है। वरना कितने प्रकार के प्रदूषण व समस्याओं से आज हम जूझ रहे हैं। अधिकांश के मूल में प्रदूषण है। जल, वायु, पृथ्वी सबकुछ प्रदूषित हो रहे है या हो चुके है। मानव की गिरती औसत आयु इसका स्पष्ट प्रमाण है। ऐसे में आवश्यकता है कि पुनः प्रकृति की ओर लौटा जाये। कक्षा के भीतर और बाहर अध्ययन की आवश्यकता के मूल में प्रकृति की उपास्यता को स्थापित करना होगा;तभी मानव का आज और कल सच्चे अर्थों में सुरक्षित हो सकेगा।  वरना हमारी सारी डिग्रियाँ केवल कागज के टूकडे मात्र ही है।      

आइएं एक एकदम प्रकृति की ओर बढ़ाएं ,

जन- जन में शिक्षा व प्रकृति संरक्षण की अलख जगाएं।।

जन्तुआलय सभ्य समाज का बेतुका मनोरंजन और जीवन के लिए संघर्ष करते पशु-पक्षियों की नक्कारखाने में तूती की आवाज     

24.12.2023

भारत में पक्षियों की ही 1250 प्रजातियाँ है जो वर्गीकरण के आधार पर काफी भिन्न हैं। यह विश्व की कुल प्रजातियों का 12 प्रतिशत है। भारत में स्तनधारियों की ही लगभग 410 प्रजातियाँ है जो विश्व की कुल प्रजातियों का  8.86% हैं।

देश में चिडियाघरों के विकास, केन्द्रीकरण व बेहतर रख- रखाव हेतु 1992 में केन्द्रीय चिडियाघर प्राधिकरण की स्थापना की गयी। वर्तमान में देश में कुल 164 चिडियाघर है। लगभग सभी अन्तराष्ट्रीय चिडियाघर प्राधिकरण से मान्यता प्राप्त है। जिसमें अनेक- छोटे बडे जन्तुआलय शामिल है। देश का सबसे बड़ा चिडियाघर चैन्नई में स्थित हैं जिसे 'अरिनगर अन्ना जूलॉजिकल पार्क' के नाम से भी जानते है। इसमें करीब 2032 पशु- पक्षियों की प्रजातियाँ पाई जाती है। 1855 में स्थापित यह चिडियाघर पहले 'मद्रास जू' के नाम से जाना जाता था। बाद में मशहुर नेता अरिनगर अन्ना की मृत्यु के बाद उनकी स्मृति में अरिनगर अन्ना प्राणि-जन्तु पार्क नाम रखा गया है। हरे- भरे वातावरण में फैला यह पक्षीविहार अपने आप में अनूठा है। वृक्षों व पौधों की अनेकों प्रजातियों केन्द्रबिन्दु भी है।

जन्तुआलय की आवश्यकता:- औचित्य विचार चर्चा का यह पक्ष जो कुछ-कुछ वन्यजीवसंरक्षण, संवर्द्धन व   पुनर्भरण की व्यवस्था का स्पष्ट मार्गप्रसस्त करता है। पर क्या इतना भर है? या कुछ विशेष भी हैं। बड़े शहरों के केन्द्र में स्थित हरे-भरे वातावरण में पक्षियों व पशुओं से आबाद ये जन्तुआलय अपनी कथा बखूब कहते है। कुछ भी हो मनोरंजन हेतु पशु-पक्षियों को पिंजरो में बंद करना कितना युक्तिपूर्ण है। भले ही हिंसक पशुओं को कैद किया गया हो। या दुर्लभ प्रजातियों के संरक्षण, जीवरक्षा, पुर्नवास, नस्लसुधार हेतु एकत्र रखा गया हो। नव्य न्याय की दृष्टि से विचार किया जाएं तो अनेक विकल्प हो सकते है। जन्तुआलयों का प्रबंधन सरकार द्वारा उत्तम प्रकार से किया जाने के बाद भी। कई विसंगतियाँ सामने आती है। पशु- पक्षियों के प्राकृतिक आवस वन, जंगल, नदियाँ, पर्वत वस्तुत: वहीं उनके निवास हेतु श्रेयस्कर है।

पशु- पक्षी बने ही है स्वच्छंद विचरण, उन्मुक्त आनंद व प्रकृति को जीवन देने के लिए। जैव- पारिस्थितिकी तंत्र में पारितंत्र का सर्वस्व वे ही है।

हम पंक्षी उन्मुक्त गगन के

पिंजरबद्ध न गा पायेंगे।

कनक- तीलियों से टकराकर

पुलकित पंख बिखर जायेंगे।।... प्रसिद्ध हिन्दी कवि शिवमंगल सिंह 'सुमन' की ये पंक्तियाँ क्या कुछ नहीं कहती है। पशु-पक्षियों के माध्यम से नीति की शिक्षा, सद्भाव, मैत्री व जीवन के ऊचें मूल्यों व आदर्शों की सच्ची शिक्षा पं. विष्णु शर्मा ने 'पंचतंत्र' व बाद में नारायण पण्डित ने 'हितोपदेश' में दी  । कालान्तर में लगभग सभी भाषाओं के साहित्य में पशु-पक्षियों पर साहित्य सृर्जना हुई है।

समय पर मांसाहार, कृत्रिम आवासों में जीवन की कठोरता, ऊड नहीं पाने से गति खोते पँख, जो शायद उडना भूल चुके है। नहीं चलने से चाल खोते पाँव, सीमेंट के निर्माणों में सीमेंट से टकराते मुक् प्राणियों के सिर, अजीब सा पागलपन न किस कारण, पीने को पानी और खाने को भोजन क्या कुछ नहीं है आदि -आदि।

इसके बाद भी यदि इनसे पूछा जाएं तो शायद कोई पशु-पक्षी स्वेच्छा से इन कंकरीट निर्माणों में न रहना चाहेगा।

और भला रहेगा भी क्यूं ?

यदि कोई मुझे कहे कि आपके फाईप स्टार होटल में रहना वो भी एक या दो |दिन नहीं जीवन पर्यन्त। खाने को लजील भोजन, सोने को गद्देदार पलंग, लेने को साँवर, तैरने को स्वीमींग पूल, सभी प्रकार की सुविधाएं, आनंद ही आनंद। बस शर्त है घर,परिवार और बिरादरी से अलग आपको ये आनंद भोगना है। केवल अकेले। क्या आप तैयार होंगे? श्याद मैं तो कभी नहीं। आप भी न हो सकोगे। क्योंकि "पराधीन सपनेऊ सुख नाहीं।"

मेरी दृष्टि में आनन्द है स्वच्छंदता, स्वतंत्रता। उसी में जीवन का सार है और उत्कर्ष भी है। जब हम मानव एक क्षण के लिए भी पराधीन नहीं रह सकते तो जरा एक पल के लिए विचारे  कि मुक् पशु- पक्षियों के लिए ऎसी व्यवस्था क्यू ?  स्वच्छंदता पर उनका भी उतना ही हक है। जंगल में स्वतंत्र विचरण करने वाले जीव-जंतु उसी परिवेश के लिए बने है। उनकी उन्मुक्तता ही सृष्टि की भी आवश्यकता है।

धरती में समाया है अन्नत अकूत बीज भंडार। लगातार पक्षियों को आसानी से सुलभ होता अनाज। उनके अनाज तलाशने की कला को भूलवाता जा रहा है। महानगरों का ध्वनि प्रदूषण उन्हें काल का ग्रास बनाता जा रहा है। पशु- पक्षियों में अनियंत्रित व असन्तुलित गर्भभात का मुख्य कारण भी है। भोजन की तलाश स्वतः ही भोजन की प्राप्ति प्राणियों को करवा देता है। अतः उन्हें जन्म से मानसिक पँगु बनाना भी ठीक नहीं है। सोने के पींजरे में सोने की कटोरी में मिलते स्वादिष्ट अन्न से कहीं अधिक पक्षियों को 'विज़न' से अन्नत प्रेम है। नस्ल सुधार और लुप्त प्राय प्रजातियों के संरक्षण के अतिरिक्त किसी भी पशु- पक्षी को कैद रखना मेरी दृष्टि में अमानवीय कृत्य है। शायद हम पशु- पक्षियों की वेदना समझ पाएं तो हमारा 'मानव' होना श्रेयस्कर होगा। मेरा आग्रह पूर्वक निवेदन है कि केवल शौक, मनोरंजन के लिए पशु- पक्षियों को कैद करना बंद करें। न तो कछुआ आपको धनवान बनायेगा न ही भाग्यशाली। केवल आपके कर्म ही आपको महान बनायेंगे। अतः स्वच्छंन जीवन के लिए बने पशु- पक्षियों को स्वतंत्र कर मानवीयता का परिचय दें।

जब सुरक्षित रहेगा जंगल।

तभी पशु- पक्षी होंगे खुशहाल।।